क्या था लाहौर घोषणापत्र, जिसके बाद पाक ने किया विश्वासघात, अब शरीफ ने कहा-हमारी गलती थी

क्या था लाहौर घोषणापत्र, जिसके बाद पाक ने किया विश्वासघात, अब शरीफ ने कहा-हमारी गलती थी

भारत ने 1999 में पाकिस्तान के साथ आपसी शांति के लिए लाहौर घोषणापत्र पर साइन किया था. लेकिन इसके तुरंत बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध छेड़कर समझौते को ना केवल तोड़ा बल्कि विश्वासघात भी किया. तब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे, जो इस समझौते पर साइन करने लाहौर गए थे. पाकिस्तान के पीएम तब नवाज शरीफ थे. जो फिर पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के अध्यक्ष चुने गए हैं.

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पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना इस्लामाबाद ने भारत के साथ 1999 में शांति समझौते का “उल्लंघन” किया. इसके लिए नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को कोसा, जिन्होंने तब शरीफ को सैन्य तख्तापलट के बाद पीएम की कुर्सी से हटाकर खुद देश के प्रमुख बन गए थे.

जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी समझौता एक्सप्रेस बस से दिल्ली से लाहौर के लिए रवाना हुए तो वाघा बॉर्डर पर उनका जमकर स्वागत हुआ. इस बस में वाजेपेयी के साथ देव आनंद, सतीश गुजराल, जावेद अख्तर, कुलदीप नैयर, कपिल देव, शत्रुघ्न सिन्हा और मल्लिका साराभाई जैसी भारतीय हस्तियां सवार थीं.

तीन दिनों की बातचीत के बाद नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता के दृष्टिकोण पर बात करने वाला ये एक शानदार समझौता था. हालांकि बमुश्किल ढाई महीने ही चल सका. इसी दौरान जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी घुसपैठ हो रही थी. मामला इतना गंभीर हो गया कि मई से युद्ध छिड़ने की नौबत आ गई.

दोनों देशों ने वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण किए थे, उससे तनाव बढ़ने लगा था. इसे खत्म करने के लिए इसी साल के अंतिम महीनों में दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने शांति प्रक्रिया के लिए पहल शुरू की. इसके तहत 23 सितंबर 1998 को एक द्विपक्षीय समझौता हुआ. दोनों सरकारों ने शांति और सुरक्षा के माहौल को बनाने और सभी तरह के विवाद को द्विपक्षीय बातचीत के आधार पर तय करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, यही लाहौर घोषणा पत्र का आधार बना.

क्या था लाहौर घोषणा पत्र
अब जानते हैं कि ये लाहौर घोषणापत्र क्या था. ये भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता और शासन संधि थी. इस समझौते पर जब वाजपेयी और शरीन ने साइन करके इस पर मुहर लगाई तो उसी वर्ष दोनों देशों की संसद ने इसकी पुष्टि भी कर दी यानि कि दोनों देशों की संसद ने भी इसे हरी झंडी दे दी.

संधि की शर्तों के तहत, परमाणु शस्त्रागार के विकास और परमाणु हथियारों के आकस्मिक और अनधिकृत इस्तेमाल से बचने की दिशा में आपसी समझ बनी. लाहौर घोषणा ने दोनों देशों के नेतृत्व को परमाणु दौड़ को खत्म करने के साथ आपसी टकराव से बचने की बात की थी. इस संधि का उद्देश्य दक्षिण एशिया में सैन्य तनाव को कम करना भी था. ये समझौता इसलिए अहम था, क्योंकि ये दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास का नया माहौल बना रहा था.

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