3,000 से ज्यादा सिखों का धर्मांतरण कर उन्हें बनाया गया ईसाई
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में भारत-नेपाल सीमा से सटे सिख बहुल गाँवों में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण का मामला सामने आया है। यह मुद्दा न केवल धार्मिक पहचान से जुड़ा है, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित एक सुनियोजित साजिश की आशंका को भी जन्म देता है। ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल के अनुसार, बीते कुछ साल में 3,000 से ज्यादा सिखों का धर्मांतरण कर उन्हें ईसाई बनाया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीलीभीत के हजारा थाना क्षेत्र के गाँवों – बैल्हा, टाटरगंज, बम्मनपुरा भगीरथ और सिंघाड़ा में सिख समुदाय की बड़ी आबादी निवास करती है। इन गाँवों में लगभग 20,000 से 30,000 सिख रहते हैं, जो मुख्य रूप से खेती और छोटे-मोटे व्यवसायों पर निर्भर हैं। स्थानीय लोगों और सिख संगठनों के अनुसार, 2020 से नेपाल सीमा से सटे इन क्षेत्रों में धर्मांतरण की गतिविधियाँ तेज हुई हैं। इन गतिविधियों का केंद्र नेपाल से आए प्रोटेस्टेंट पादरी और कुछ स्थानीय लोगों को बनाए गए पास्टर हैं, जो कथित तौर पर आर्थिक प्रलोभन, अंधविश्वास और रोग निवारण सभाओं के जरिए सिखों को ईसाई मजहब अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
मामले का खुलासा तब हुआ जब बैल्हा गाँव की एक सिख महिला मंजीत कौर ने 13 मई 2025 को पीलीभीत के हजारा थाने में शिकायत दर्ज कराई। मंजीत ने आरोप लगाया कि उसके पति को पहले ही बहला-फुसलाकर ईसाई बनाया जा चुका है, और अब उस पर और उसके बच्चों पर भी धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जा रहा है। उसने बताया कि जब उसने धर्म परिवर्तन से इनकार किया, तो उसके खेतों को नुकसान पहुँचाया गया और बच्चों के साथ मारपीट की गई। मंजीत के अनुसार, आरोपितों ने सरकारी योजनाओं का लाभ और दो लाख रुपये का लालच दिया, लेकिन कोई वादा पूरा नहीं किया गया। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने आठ नामजद और दर्जनों अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया।
ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष हरपाल सिंह जग्गी ने इस मामले को गंभीरता से उठाया। उन्होंने स्थानीय गुरुद्वारा श्री सिंह सभा में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि पीलीभीत के सिख बहुल गाँवों में करीब 3,000 सिखों का धर्म परिवर्तन हो चुका है। उन्होंने जिला प्रशासन को 160 परिवारों की सूची सौंपी, जिनके धर्म परिवर्तन की पुष्टि हुई है। जग्गी ने आरोप लगाया कि नेपाल से आए पादरी और कुछ स्थानीय पास्टर गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास का फायदा उठाकर सिखों को ईसाई बना रहे हैं।उन्होंने यह भी दावा किया कि कुछ परिवारों के घरों पर क्रॉस के निशान बनाए गए हैं, जो धर्मांतरण का प्रतीक माने जा रहे हैं। हालाँकि, प्रशासनिक सख्ती के बाद कई परिवारों ने इन निशानों को हटा लिया है, लेकिन वे अब भी ईसाईयत का पालन कर रहे हैं। जग्गी ने कहा कि यह सिख समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है और इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हो सकता है, जो नेपाल के रास्ते इस साजिश को अंजाम दे रही हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक और जिला प्रशासन से निष्पक्ष जाँच और सख्त कार्रवाई की माँग की।
आजतक की एक ग्राउंड रिपोर्ट ने इस मामले को और गहराई से उजागर किया। उनकी टीम ने बैल्हा गाँव का दौरा किया और स्थानीय लोगों, पीड़ितों और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से बातचीत की। इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। स्थानीय लोगों ने बताया कि नेपाल से आने वाले पास्टर और पंजाब के कुछ मिशनरी लोग ‘चंगाई प्रार्थना सभाओं’ के जरिए सिखों को लुभा रहे हैं। ये सभाएँ बीमारी ठीक करने और आर्थिक मदद का वादा करती हैं, जिससे गरीब और अशिक्षित लोग आसानी से प्रभावित हो जाते हैं।
रिपोर्ट में एक पीड़ित परमिंदर सिंह ने बताया कि मिशनरी लोग बाहरी तौर पर यह नहीं दिखाते कि कोई धर्म परिवर्तन कर चुका है। वे सिखों को उनकी पारंपरिक वेशभूषा और नाम बरकरार रखने की सलाह देते हैं, ताकि धर्मांतरण का पता न चले। फिर भी कई लोग ‘उपचार सत्रों’ और आर्थिक लालच के कारण ईसाईयत की ओर झुक रहे हैं। हालाँकि लखविंदर सिंह और बलजीत सिंह जैसे लोग धर्म परिवर्तन के बाद ‘घर वापसी’ कर सिख धर्म में लौट आए हैं। लखविंदर ने बताया कि उनके बेटे की बीमारी ठीक न होने पर वे प्रार्थना सभाओं में गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, जिसके बाद उन्होंने सिख धर्म में वापसी की।
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बताया कि अब तक 160 परिवारों की ‘घर वापसी’ कराई जा चुकी है। इसके लिए कमेटी ने ‘अमृतपान’ जैसे धार्मिक कार्यक्रम शुरू किए हैं। साथ ही नौ ऐसे लोगों की सूची सार्वजनिक की गई है, जो सिख से ईसाई बनकर अब दूसरों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने के लिए गुरुद्वारे में उनकी सूची लगाई गई है।पीलीभीत की भौगोलिक स्थिति इस मामले को और जटिल बनाती है। नेपाल सीमा से सटा होने के कारण यह क्षेत्र लंबे समय से सीमापार गतिविधियों का केंद्र रहा है। जाँच एजेंसियों को शक है कि नेपाल से संचालित कुछ एनजीओ और मिशनरी संगठन धर्मांतरण की गतिविधियों में लिप्त हैं। हरपाल सिंह जग्गी ने दावा किया कि 2012 से नेपाल के पादरी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और विदेशी ताकतों के इशारे पर सिखों को निशाना बनाया जा रहा है। उनका कहना है कि यह केवल धार्मिक मामला नहीं, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है।
स्थानीय सिख नेताओं ने शिक्षा की कमी और गरीबी को धर्मांतरण का प्रमुख कारण बताया। उनका कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले लोग आसानी से प्रलोभनों का शिकार हो जाते हैं। कई पीड़ितों ने शपथपत्र देकर बताया कि उन्हें दो लाख रुपये, आवास, शौचालय और अन्य सरकारी योजनाओं का लालच दिया गया, लेकिन बाद में कोई लाभ नहीं मिला।
पीलीभीत प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। डीएम संजय कुमार सिंह ने बताया कि एक विशेष जाँच टीम (SIT) गठित की गई है, जो मामले की तह तक जाएगी। एसपी अभिषेक यादव ने कहा कि मंजीत कौर की शिकायत पर आठ नामजद और दर्जनों अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। साथ ही एक अवैध चर्च को भी हटाया गया है। प्रशासन ने उन गाँवों में काउंसलिंग कैंप शुरू किए हैं, जहाँ धर्मांतरण की शिकायतें मिली हैं।
हालाँकि, पूरनपुर तहसील के SDM अजीत प्रताप सिंह का कहना है कि बड़े पैमाने पर सुनियोजित धर्मांतरण का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। उनका कहना है कि कुछ लोग अपनी आस्था के कारण प्रार्थना सभाओं में जा रहे हैं, जिन्हें रोका नहीं जा सकता। हालाँकि लोगों के शपथपत्र और गुरुद्वारा कमेटी की सूची इस दावे को चुनौती देते हैं।इस बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले का संज्ञान लिया है और सभी सीमावर्ती जिलों में सतर्कता बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने ‘उत्तर प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून’ के तहत सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है, जिसके तहत जबरन या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर रोक लगाई गई है।
Read Also : ऑपरेशन सिंदूर पर बोले अमित शाह ‘हमने आतंकवादियों को मारा, लेकिन पाकिस्तान ने इसे व्यक्तिगत तौर पर लिया’
सिख संगठनों का कहना है कि यह मामला उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है। वे माँग कर रहे हैं कि जिन लोगों ने खुद अपनी मर्जी से धर्मांतरण किया है, उन्हें अपने दस्तावेजों में धर्म बदलने की जानकारी दर्ज करानी चाहिए। साथ ही वे दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई और उच्चस्तरीय जाँच की माँग कर रहे हैं। गुरुद्वारा कमेटियों ने ‘घर वापसी’ के लिए बड़े पैमाने पर धार्मिक जागरूकता अभियान शुरू किया है।
बता दें कि ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट्स में बताया था कि कैसे नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में ईसाई मिशनरियाँ धर्मांतरण का जाल फैला रही हैं। नेपाल से सटे 7 सीमावर्ती जिलों में ईसाई धर्मांतरण के मामलों के मामलों पर कार्रवाई भी हो चुकी है। बीते साल यूपी से लोगों को नेपाल ले जाने का मामला सामने आया था, जिसमें हिंदू संगठनों ने आरोपित पादरियों को पकड़कर न सिर्फ पीटा था, बल्कि उनके चेहरों पर कालिख भी पोत दी थी। ईसाई मिशनरियों के अयोध्या तक फैले जाल पर भी हमने रिपोर्ट प्रकाशित की थी।