10 मिनट का हमला, 82 आतंकी ढेर; नायक ने बताई वीरता की पूरी कहानी
Rajendra ramrao nimbhorkar gen retd share story
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साल 2016 में उड़ी के सैन्य शिविर पर आतंकी हमला हुआ। कुछ दिन बाद भारत ने अपने वीर जवानों की बदौलत पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हमारे जवान जमीन के रास्ते घुसे और कार्रवाई को अंजाम देकर बिना किसी खरोंच के लौट आए। सितंबर 2016 की यह सर्जिकल स्ट्राइक देश की सेना के साहस और शौर्य की कभी न भूलने वाली कहानी बन गए। इस सर्जिकल स्ट्राइक के नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र रामराव निंभोरकर जो अमर उजाला संवाद उत्तर प्रदेश में मौजूद थे। उन्होंने देश के सम्मान की बात विषय पर अपनी बात रखी। सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी कहानी को उन्हीं के शब्दों में पढ़ें…
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जब मैं युवा अफसर था, तब से अमर उजाला से रिश्ता रहा है। मैं द्रास में था, तब वहां राशन आता था। उसी के साथ अमर उजाला की 30 प्रतियां आती थी। हमें जिंदा रखने में अमर उजाला ने बहुत मदद की। उड़ी हमले की बात करूं तो 16 सितंबर को पाकिस्तान से आए आतंकियों ने उड़ी में हमला कर दिया। कई जवान शहीद हुए। हमने सोचा था कि इसका जवाब जरूर देना चाहिए। मैं कोर कमांडर था। मेरे नीचे दो लाख सैनिक थे। 270 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा मेरे जिम्मे थी। मेरे पास कमांडो दस्ते थे। मैंने उनसे कहा कि अगर मौका मिलता है तो यह मत कहना कि हम तैयार नहीं है। हम स्ट्राइक के लिए तकरीबन तैयार थे। 17 तारीख को हमें कहा गया कि योजना बनाइए। मैंने सोचा कि प्लान तो दे देंगे, लेकिन सवाल था कि नतीजा क्या होगा? 2008 के मुंबई हमलों के बाद भी कहा गया था कि हम छोड़ेंगे नहीं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, जब कहा गया कि हम जवाब जरूर देंगे। पहले ऐसा होता था तो हम ज्यादा से ज्यादा कहते थे कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना बंद कर देंगे। 21 तारीख को फोन आया, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर थे। हमें कहा गया कि आप शुरू करो।
हम आश्चर्यचकित रह गए। हमने पूछा कि जो योजना बनाई है, क्या वाकई उस पर अमल करना है? उन्होंने कहा कि हां करना है। हमने पूछा कि कब? तो जवाब मिला कि जल्दी। दुश्मन को कैसे आश्चर्यचकित करना है, किस समय करना है, यह हमें देखना था। 28-29 सितंबर के लिए हमने इसकी योजना बनाई। दूसरी बात यह थी कि कब करना है? आदमी सबसे ज्यादा गहरी नींद में रात दो बजे से तड़के 4 बजे के बीच होता है। वही समय चुना गया। तीसरी अहम बात थी- हम सेना में वास्तविक तौर पर धर्मनिरपेक्षता अपनाते है। जिन आतंकवादियों पर हमला करने वाले थे, वे सब मुसलमान थे। 29 तारीख को उनकी पहली नमाज चार बजे के करीब थी। हमने सोचा कि जो कुछ करेंगे, उससे पहले करेंगे। फिर सरप्राइज कैसे करें, यह देखना था। प्रधानमंत्री से लेकर हमारे तक ही सबको प्लानिंग पता था। जवानों को भी नहीं पता था कि आखिर जाना कब है। उड़ी पर बनी फिल्म में थोड़ा मसाला जोड़ा गया है क्योंकि ऐसा नहीं करते तो डॉक्यूमेंट्री बन जाती, जिसे कोई नहीं देखता। सेना में अभिनेत्रियां नहीं होती। हीरो 1 आतंकी को ढूंढता रहता है, लेकिन हमारे पास इतना वक्त नहीं होता। तुरंत एक्शन करना होता है। भारत में मेरे ख्याल से प्रधानमंत्री से लेकर मुझ तक सिर्फ 17 लोगों को इस बारे में पता था।
मेरे नंबर-टू अफसर यानी मेजर जनरल को भी पता नहीं था। वो दौड़कर आए कि टीवी पर देखा है, ऐसा हुआ था क्या। मैंने कहा कि टीवी पर दिखा रहे हैं तो हुआ ही होगा। मेरा निजी तौर पर मानना है कि भारत को इतिहास में अगर कोई सबसे अच्छा रक्षा मंत्री मिला तो वे मनोहर पर्रिकर थे। राजनीतिक इच्छाशक्ति की सबसे ज्यादा जरूरत थी, जो उस वक्त मौजूद थी। अगर मुंबई हमले के बाद हम निर्णय लेते तो शायद नतीजा यही होता और आगे हमले नहीं होते। उड़ी के बाद हमले कम हुए। स्ट्राइक में शामिल तीन पार्टियों के पास 35 लोग थे। सेना का उसूल है कि अगर जवान शहीद या जख्मी हो जाए तो दुश्मन के इलाके में हम उसे नहीं छोड़ते। 900 मीटर वापस लाने के लिए आदमी चाहिए। इसलिए 35 लोग रखे गए। चौकियों के बीच सुरंग होती है। अगर उस पर कदम रख दिया तो मिशन खत्म। इसलिए हमने हर सौ मीटर पार करने के लिए ढाई से 3 घंटे लगाए। नियंत्रण रेखा के बीच से बंदर आते हैं, खच्चर आते है, उसका ध्यान रखा। तकरीबन तड़के तीन बजे टारगेट पास हमारे जवान पहुंच गए। आतंकियों को कैसे न्यूट्रलाइज करें, यह चुनौती थी। साइलेंसर वाले हथियारों से भी थोड़ी तो आवाज होती ही है। जवानों ने धीरे से जाकर सबके गले काट दिए। हमने 10 मिनट में पूरे हथियार बरसा दिए। थर्मल कैमरा से इसकी शूटिंग हुई। 12 मिनट में जवान वहां से निकले। तड़के पांच बजे वापस लौटे। कुछ जगहों पर मुकाबला हुआ। खुशकिस्मती से हमारा कोई जवान जख्मी नहीं हुआ। हम हेलिकॉप्टर से नहीं गए थे, पैदल गए थे। सुबह ब्रीफिंग हुई। वीडियोग्राफी से पता चला कि 28-30 मुर्दा नजर आ रहे है। कुल 82 आतंकियों को हमने मार गिराया था। हमारे एक भी जवान को कुछ नहीं हुआ, यह हमारे लिए सबसे बड़ी बात थी।
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